गुरुवार, 19 जनवरी 2017

कौन है हिन्दू यहाँ?

कौन है हिन्दू यहाँ?

कौन है हिन्दू यहाँ?
कौन?
वे आते है
और हमारे लोगो का रक्त बहाते है,
और हम-
हम यहाँ अपने स्वार्थ की चादर भीतर,
उन्हें अपना तक नहीं कहते |
कौन है हिन्दू यहाँ?
वहाँ केवल एक हिन्दू का नाम सुन कर,
उन लोगो का खून उबल जाता है;
किन्तु यहाँ-
सेंकडो हिन्दुओ का रक्त बहने पर भी,
हमारी रगो में जमी बर्फ नहीं पिघलती |
उनका लहू उनके मौन से नहीं,
हमारे मौन से बहा है |
और तम में जीने वाले हम,
स्वयं को इसका दोषी तक नहीं मानते!
गुजरात में जलते है हिन्दू |
किन्तु बाहर किसी को परवाह नहीं!
बंगाल में मरते है हिन्दू,
किन्तु गुजरात के हिन्दुओ का
रक्त नहीं उबलता!
कश्मीर में कटते है हिन्दू,
किन्तु किसीका मौन नहीं तूटता!
कौन है हिन्दू यहाँ?
यहाँ कोई गुजराती, तो कोई बंगाली!
कोई पंजाबी, तो कोई मराठी!
कोई मारवाड़ी, तो कोई तामील!
कोई ब्राह्मण, तो कोई राजपूत! 
कोई दलित, तो कोई ठाकुर!
कौन है हिन्दू यहाँ?
यदि होते कोई हिन्दू यहाँ तो
वह हाथ
जो बढ़ा था हिंदुस्तान के वक्ष पर,
वह बढ़ने से पहले ही
कट चूका होता!
यदि होते कोई हिन्दू यहाँ तो
वे शीश
जो उठे थे हमारा घर छिनने के लिए.
वे कबके धड़ से उतर चुके होते!
जिस देश को सींचा है
हमने अपने रक्त से,
किस में इतना साहस कि छीन सके
हम से हमारा अधिकार!
किन्तु
कौन है हिन्दू यहाँ?
कौन?
जहाँ कभी प्रताप और शिवाजी की हुँकारे गूँजती थी,
वहाँ आज
केवल पत्थर के शिल्प है |
कौन है हिन्दू यहाँ?
ये तो सब धर्म-निरपेक्ष है |
उस भूमि पर,
जहाँ सनातन धर्म का अस्तित्व
आज संकट में है!
हिन्दुओ का स्वाभिमान
आज संकट में है!
कौन है हिन्दू यहाँ?

कौन?   

~ भार्गव पटेल 

शुक्रवार, 13 जनवरी 2017

युवा


युवा


ठण्ड में जमी शिराओ में आज रक्त नहीं उबलते,
युवाओ के खोखले दिलो में आज अंगारे नहीं जलते |
सीमाएं लांघ जाते है ये देश की पीठ पर पैर रखकर,
नहीं, नहीं! कोई नहीं बचा जो उठा सके देश का सर!

इनके मस्तिष्क के द्वारो पर कोई ताला लगा है,
उर का सूर्य छिप गया है और तम काला लगा है |
किन्तु देख इनके मन में है केवल तुच्छता के विचार,
है उन आँखों में शीतलता जहां जलने चाहिए अंगार |

लगा रहा है राहु अब इस युवाधन पर कोई ग्रहण,
ठोक-ठोक कर देखो, टटोलो इनके अंतःकरण;
देखो क्या कोई मानवता है अभी तक पल रही? 
देखो क्या कोई चिंगारी है अभी तक जल रही?

लगाओ आग कोई, जलाओ हिमालय इनके अंतरंगों का,
पिघलाओ हिमशिलाए ह्रदय की, उबालो रुधिर रगो का |
तोड़-तोड़ इन पत्थर के युवाओ को डालो इनमे जान,
कि सुन ले पुकार देश की और बने देश का अभिमान |  

~ भार्गव पटेल 

गुरुवार, 12 जनवरी 2017

ये युवाधन डूब रहा है


ये युवाधन डूब रहा है


ढूंढता रहता हूँ
इस युवा महाकुम्भ में,
कि कहीं कोई विवेकानंद दिख जाए;
कि ये युवाधन डूब रहा है
तम के जलधि में |
आवश्यकता है किसी नरेन्द्र की
जो इनका हाथ पकड़
इन्हें आलोक की दिशा बता पाए |
कि ये युवाधन डूब रहा है...

करता रहता हूँ प्रयास मैं भी,
निज अंतरंग में ढूंढता रहता हूँ;
कि कही कोई अनहद नाद
प्रज्वलित कर दे ज्ञान का दीप |
जोहता रहता हूँ इस पीढ़ी को
अन्धकार के कुए की ओर बढ़ते |
वह कुआ इन्हें कोई
सूर्य होता है प्रतीत |
जहां वे देखते है अपना गन्तव्य!
किन्तु वह कोई रवि नहीं,
अपितु ब्लैक होल है,
जहां सबका अस्तित्व मिट जाता है |  

किन्तु मेरे प्रयास भी अब
लगता है दम तोड़ रहे है |
आवश्यकता आन पड़ी है पुनः
किसी सूर्योदय की |
किसी विवेकानंद की |
जो दे सके इन्हें दिशा का भान!

सत्य का ज्ञान!

~ भार्गव पटेल 

मंगलवार, 10 जनवरी 2017

जीवन का आडम्बर



जीवन का आडम्बर

कहते है जो लोग कि-
"कहने दो लोगो का तो काम है कहना!
लोगो को भूल
काम करो अपना,
जीवन शांतिमय होगा!"
मिथ्या है!
ये सब मिथ्या है!

पड़ता है हमारे जीवन पर
उन लोगो का भी असर,
जो चाहे हमें गिराने की कोशिश करते हो |
हम उस जमाने में जी रहे है,
हमारे व्यक्तित्व का निर्णय जहाँ,
निर्भर है दुसरो के
अभिप्रायों पर |
कौन पहचानना चाहता है
तुम्हे यहाँ?
कोई नहीं! कोई नहीं!
बस काम निकलवाना चाहते है
सब तुमसे!

अगर लगता है कि
कोई अंतर होगा
लोगो के कहने से,
तो मिथ्या में जी रहे हो तुम |
यहॉं तो दुसरो के अभिप्रायों पर
तुम्हारे नाम की किताब
छाप दी जाती है |

योग्यता-प्रतिभा-टैलेंट
ये सब फ़िज़ूल की बाते है,
अब तो डंका केवल
नाम से बजता है |
रेफरेन्स का है ज़माना |
चाहे अपनी योग्यता को
ऑफिसों के दरवाजो पर घिस-घिस कर,
ललाट पर प्रतिभा का टिका तक लगा लो;
डंका तो केवल नाम से ही बजता है |
काम केवल नाम से ही चलता है |

आडम्बर है ये सफलता!
निज महेनत को घोल कर
यदि पी भी लोगे और घोल दोगे
अपने रक्त के साथ,
तब भी निष्फलता का हिमालय
पथ रोककर खड़ा दिखेगा |

नहीं है कोई कमी
तुम्हारी महेनत में,
ना ही यह तुम्हारी निजी गलती है!
कसूर तुम्हारा केवल इतना है कि,
तुमने सफलता के लिए
इनके तलवे चाटने से इनकार कर दिया |
बस इतनी सी है तुम्हारी भूल!
किन्तु यह भूल नहीं,
बल्कि खुद्दारी है अपनी |
क्यों ठोके सलाम उन्हें
जिनकी हैसियत सलाम ठोकने वाली नहीं |
खुद्दारी कहो इसे,
भूल नहीं

त्याग दो मोह सफलता का,
यदि जीना है शान से,
गर्व से,
खुद्दारी से |
त्याग दो मोह धन का,
यदि जीना है मानव की तरह |
कहते है मनुष्य सब प्रजातियो में
 है अत्याधिक सुविकसित |
किन्तु यदि जीते रहे यों ही
समृद्धि की लालच में
शीश झुकाकर,
पैसो के लिए तलवे चाट कर,
तो हाँ, हम पशु से कम नहीं!
भवितव्य होगा तममय!

आजाद भारत में
नहीं मंजूर किसी की तानाशाही!
नहीं बेच सकता निजत्व,
समृद्धि के लिए, धन के लिए!

अगर जीऊंगा खुद्दारी से,
तो हाँ, मानता हूँ कि,
दुःख भोगूँगा मृत्यु तक |
कदाचित गरीबी ही
यमदूत बन निगल जाए |
किन्तु मृत्यु के समक्ष
खुद्दारी से कहूँगा
'जिया हूँ मनुष्य की तरह |
जिया हूँ सत्य के साथ,
और देखा हूँ लोगो का आडम्बर |
कैसे नोचते है
एकदूसरे को ही ये दुराचारी,
केवल सफलता की लालच में!
अगर देना है पुनर्जन्म,
तो किसी नीच योनि में देना |
किन्तु फिर से मनुष्य ना बनाना!
थकान भर गई है
रग-रग में,
इनकी नफरत देखकर!

फिर से मनुष्य ना बनाना!'

~ भार्गव पटेल