मंगलवार, 10 जनवरी 2017

जीवन का आडम्बर



जीवन का आडम्बर

कहते है जो लोग कि-
"कहने दो लोगो का तो काम है कहना!
लोगो को भूल
काम करो अपना,
जीवन शांतिमय होगा!"
मिथ्या है!
ये सब मिथ्या है!

पड़ता है हमारे जीवन पर
उन लोगो का भी असर,
जो चाहे हमें गिराने की कोशिश करते हो |
हम उस जमाने में जी रहे है,
हमारे व्यक्तित्व का निर्णय जहाँ,
निर्भर है दुसरो के
अभिप्रायों पर |
कौन पहचानना चाहता है
तुम्हे यहाँ?
कोई नहीं! कोई नहीं!
बस काम निकलवाना चाहते है
सब तुमसे!

अगर लगता है कि
कोई अंतर होगा
लोगो के कहने से,
तो मिथ्या में जी रहे हो तुम |
यहॉं तो दुसरो के अभिप्रायों पर
तुम्हारे नाम की किताब
छाप दी जाती है |

योग्यता-प्रतिभा-टैलेंट
ये सब फ़िज़ूल की बाते है,
अब तो डंका केवल
नाम से बजता है |
रेफरेन्स का है ज़माना |
चाहे अपनी योग्यता को
ऑफिसों के दरवाजो पर घिस-घिस कर,
ललाट पर प्रतिभा का टिका तक लगा लो;
डंका तो केवल नाम से ही बजता है |
काम केवल नाम से ही चलता है |

आडम्बर है ये सफलता!
निज महेनत को घोल कर
यदि पी भी लोगे और घोल दोगे
अपने रक्त के साथ,
तब भी निष्फलता का हिमालय
पथ रोककर खड़ा दिखेगा |

नहीं है कोई कमी
तुम्हारी महेनत में,
ना ही यह तुम्हारी निजी गलती है!
कसूर तुम्हारा केवल इतना है कि,
तुमने सफलता के लिए
इनके तलवे चाटने से इनकार कर दिया |
बस इतनी सी है तुम्हारी भूल!
किन्तु यह भूल नहीं,
बल्कि खुद्दारी है अपनी |
क्यों ठोके सलाम उन्हें
जिनकी हैसियत सलाम ठोकने वाली नहीं |
खुद्दारी कहो इसे,
भूल नहीं

त्याग दो मोह सफलता का,
यदि जीना है शान से,
गर्व से,
खुद्दारी से |
त्याग दो मोह धन का,
यदि जीना है मानव की तरह |
कहते है मनुष्य सब प्रजातियो में
 है अत्याधिक सुविकसित |
किन्तु यदि जीते रहे यों ही
समृद्धि की लालच में
शीश झुकाकर,
पैसो के लिए तलवे चाट कर,
तो हाँ, हम पशु से कम नहीं!
भवितव्य होगा तममय!

आजाद भारत में
नहीं मंजूर किसी की तानाशाही!
नहीं बेच सकता निजत्व,
समृद्धि के लिए, धन के लिए!

अगर जीऊंगा खुद्दारी से,
तो हाँ, मानता हूँ कि,
दुःख भोगूँगा मृत्यु तक |
कदाचित गरीबी ही
यमदूत बन निगल जाए |
किन्तु मृत्यु के समक्ष
खुद्दारी से कहूँगा
'जिया हूँ मनुष्य की तरह |
जिया हूँ सत्य के साथ,
और देखा हूँ लोगो का आडम्बर |
कैसे नोचते है
एकदूसरे को ही ये दुराचारी,
केवल सफलता की लालच में!
अगर देना है पुनर्जन्म,
तो किसी नीच योनि में देना |
किन्तु फिर से मनुष्य ना बनाना!
थकान भर गई है
रग-रग में,
इनकी नफरत देखकर!

फिर से मनुष्य ना बनाना!'

~ भार्गव पटेल 

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