ये युवाधन डूब रहा है
ढूंढता
रहता हूँ
इस युवा महाकुम्भ में,
कि कहीं कोई विवेकानंद दिख जाए;
कि ये युवाधन डूब रहा है
तम के जलधि में |
आवश्यकता है किसी नरेन्द्र की
जो इनका हाथ पकड़
इन्हें
आलोक की दिशा बता पाए |
कि ये युवाधन डूब रहा है...
करता रहता हूँ प्रयास मैं भी,
निज अंतरंग में ढूंढता रहता हूँ;
कि कही कोई अनहद नाद
प्रज्वलित कर दे ज्ञान का दीप |
जोहता रहता हूँ इस पीढ़ी को
अन्धकार
के कुए की ओर बढ़ते |
वह कुआ इन्हें कोई
सूर्य होता है प्रतीत |
जहां वे देखते है अपना गन्तव्य!
किन्तु
वह कोई रवि नहीं,
अपितु ब्लैक होल है,
जहां सबका अस्तित्व मिट जाता है |
किन्तु
मेरे प्रयास भी अब
लगता है दम तोड़ रहे है |
आवश्यकता आन पड़ी है पुनः
किसी सूर्योदय की |
किसी विवेकानंद की |
जो दे सके इन्हें दिशा का भान!
सत्य का ज्ञान!
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